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डीएसपी ने सिर पर हाथ रख कसम खाई थी आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे, 22 दिन में कुछ नहीं किया, पीड़ित सड़कों पर आए तो लाठियों से पीटा

बिंझौल गांव में 3 बच्चों की हत्या के मामले में 22 दिन से परिजनों को पुलिस न्याय तो नहीं दिला पाई, लेकिन लाठियों से मार-मारकर जख्मी जरूर कर दिया। पीड़ित अपने कश्यप समाज के लोगों के साथ गुरुवार सुबह ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से लघु सचिवालय के सामने धरना-प्रदर्शन करने आए थे। उनकी मांग थी कि आरोपी गिरफ्तार किए जाएं।

8 जुलाई को जब प्रदर्शन कर जाम लगाया तो डीएसपी संदीप ने अपने सिर पर हाथ रख कसम खाई थी कि आरोपियों को नहीं छोड़ेंगे, लेकिन किया कुछ नहीं किया। गुस्साए लोगों ने जीटी रोड पर दोनों ओर जाम लगा दिया। पहले पुलिस अफसरों और फिर एसडीएम ने समझाया। डीएसपी संदीप की गाड़ी का घेराव किया तो पुलिस ने रोका। धक्का-मुक्की के बाद पुलिस ने लाठियां बरसा दीं। पुलिस समाज के नेताओं को उठाकर गाड़ी में डालकर ले गई। भड़के लोगों ने पुलिस पर पथराव किया।

लघु सचिवालय से लाल बत्ती तक पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को बल प्रयोग कर खदेड़ा। राहगीरों पर भी लाठियां बरसाईं। इससे मृतक बच्चे अरुण की मां सुनीता, पिता बिजेंद्र, दादा इंद्रसिंह, दादी नीलम, मृतक बच्चे लक्ष्य की मां शकुंतला, नानी रोशनी, मृतक बच्चे वंश की दादी सोना, अनिल, अनीता, अशोक, खुशीराम, नारायणा के रणधीर, भादड़ के ओमप्रकाश और हरबीर, निम्बरी के विनोद सहित करीब 50 लोग घायल हो गए। पथराव में सीआईए-वन प्रभारी राजपाल, सीआईए-2 के हवलदार प्रमोद, सदर थाने के हवलदार संदीप समेत 10 पुलिसकर्मियों को मामूली चोट आई हैं।

तब जाम खुलवाना था तो डीएसपी ने अपनापन दिखाया और अब बात करने से भी कर दिया साफ इनकार
यह तस्वीर 8 जुलाई की है। बच्चों के हत्या आरोपियों पर मांग को लेकर जब परिजनों व ग्रामीणों ने रोड जाम किया था तब डीएसपी संदीप ने सिर पर हाथ रखकर कसम खा वादा किया था कि किसी भी आरोपी को नहीं छोड़ेंगे। पीड़ित परिवारों को उनके संकल्प से न्याय मिलने की उम्मीद जगी थी। लेकिन गुरुवार को जब डीएसपी से उनके वादे के बारे में पूछा तो बोले कि मैं कुछ नहीं कहूंगा, पुलिस पीआरओ से बात कर लो।

बर्बरता...रास्ते में जो मिला पुलिस ने उसे ही पीटकर किया घायल
पुलिस ने लाठीचार्ज के दौरान जो भी मिला उसे ही पीट दिया। महिलाओं के साथ बुजुर्गों को भी चलने लायक नहीं छोड़ा। तहसील में डीड राइटर के पद पर तैनात राजिंद्र दुआ तहसील कैंप के एक नर्सिंग होम में जीजा को भर्ती कराकर तहसील में लौट रहे थे। वे भी पुलिस की लाठीचार्ज का शिकार हो गए। इसी तरह एमपी के रीवा जिले के सतीश ने बताया कि वह प्रयागराज से बाया ट्रेन दिल्ली आया। गुरुवार सुबह वह बस से पानीपत पहुंचा। बस से उतरने के बाद पुलिस ने उसे पकड़ लिया और जमकर लाठी बरसाई। इससे वह चलने लायक भी नहीं रहा।

तालाबंदी...लघु सचिवालय के गेट पुलिस ने करवा दिए लॉक
बार-बार एसपी मनीषा चौधरी से मिलने के बाद परिजनों ने कुछ दिन पहले चेतावनी दी थी कि अगर गिरफ्तारी नहीं हुई तो लघु सचिवालय का घेराव करेंगे। तब किसी अधिकारी को अंदर नहीं जाने देंगे और न ही बाहर आने देंगे। गुरुवार को प्रदेश भर के कई जिलों से लोग बिंझौल गांव में पहुंचे। वह ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में भरकर और पैदल लघु सचिवालय आए। इससे पहले प्रशासन ने लघु सचिवालय के दोनों गेट पर ताला लगवा दिया। बाहर सिटी, सदर, चांदनी बाग, बापौली, मॉडल टाउन, सीआईए समेत 8 से ज्यादा थानों की पुलिस तैनात कर दी।

नाकामी... पुलिस और सीआईडी ने आरेापी नहीं पकड़े, बस लारे दिए
पुलिस और सीआईडी का फेलियर के कारण तनाव पैदा हुआ। पहले से यह तय था कि समाज के लोग आंदोलन करेंगे। पहले डीएसपी समेत पुलिस के अन्य अफसरों ने झूठ बोला और लोगों को लारे देते रहे। लेकिन कार्रवाई कुछ नहीं की। पुलिस पीड़ितों का भरोसा जीतने में फेल रही है कि पुलिस आपके साथ है और आरोपी बख्शे नहीं जाएंगे। पुलिस समाज के मौजिज व्यक्तियों से भी संपर्क कर भरोसा जीतकर आंदोलन टाल सकती थी। लेकिन न पीड़ित परिवारों को न्याय दिला सकी और न ही उनका भरोसा जीत पाई।

आरोप-प्रत्यारोप...डीएसपी और समाज के लोग एक-दूसरे पर बरसे
घटना के बाद दोनों पक्ष अपने-अपने बचाव में उतर आए। सिटी डीएसपी विरेंद्र सैनी ने कहा कि लोग सड़क पर जमा लगाकर बैठे थे। उनको कहा था कि अगर आप जांच से संतुष्ट नहीं है तो दूसरे जिले से जांच करा लो। एसडीएम ने भी उनको समझाया। दो घंटे तक समझाते रहे। लोगों ने पथराव किया तो लाठीचार्ज करना पड़ा। वहीं समाज के नेता हरीश ज्ञान कश्यप ने कहा कि 22 दिन में गिरफ्तारी नहीं होने पर लोग धरना प्रदर्शन के लिए आ रहे थे। पुलिस ने रास्ते में लोगों को रोक लिया। इससे जाम लगा दिया। फिर लाठीचार्ज कर दिया।

ये 5 सवाल...बताते हैं क्राइम हुआ है, पर पुलिस क्यों दबा रही है केस
इस केस में पीड़ित परिवारों के लिए न्याय मांग रहे कश्यप समाज के रिटायर्ड डीएसपी करताराम ने 5 सवाल खड़े किए। जो बताते हैं घटना वाले दिन कुछ तो क्राइम हुआ था, पर पुलिस केस को क्यों दबा रही है। इससे बारे में जवाब देना चाहिए।

  • 1.यह तय हो गया कि ब्लीच हाउस में 6 बच्चे पतंग के लिए धागा लेने गए थे। वहां मैनेजर ने बच्चों को धमकाया। एक को थप्पड़ मारा तो वह बेहोश हो गया। तब 5 बच्चे भागे। 3 गांव की तरफ भागे, जबकि दो दूसरी ओर भागे। 3 बच्चों ने ब्लीच हाउस वालों को अपने और दो बच्चों के पीछे आते हुए देखा। वे गला चीखकर ये बात बोल रहे हैं। फिर बेहोश हुए व भागे दो बच्चों के शव रजवाहे में मिले। ऐसा क्या हुआ, जिससे उनकी जान चली गई।
  • 2.नहर से जब शव मिले तो उनके शरीर पर ब्लीच हाउस की चादर लपटी थी। ये कैसे लपट गए।
  • 3.पुलिस कह रही है कि डूबने से मौत हुई। अगर आरोपियों ने रजवाहे में उनको धक्का दे दिया हो तो कैसे तय होगा कि बच्चों की हत्या नहीं हुई।
  • 4.गवाह के बयान से यह तय है कि आरोपियों ने मृतक बच्चों पीछा किया। अगर वे अपने बचाव के लिए रजवाहे में कूदे हों तब भी आरोपियों पर गैर इरादतन हत्या आईपीसी की धारा 304 का केस बनता है।
  • 5. एसपी ने 7 दिन में बिसरा रिपोर्ट मंगाकर मामले को क्लियर करने की बात कही। 22 दिन हो गए, अब तक रिपोर्ट नहीं आई। देरी क्यों हो रही है। जब एसपी से मिले और डीएसपी संदीप को एसआईटी से हटाने के लिए बोला तब भी उन्हें एसआईटी से नहीं हटाया गया। किसके दबाव में पुलिस काम कर रही है।


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इस तस्वीर से देखिए... इंसाफ मांगने पर पानीपत पुलिस कैसे न्याय देती है। पीड़ित परिवार के साथ गांवों में रहने वाले अन्य बच्चों की मांएं भी थीं। जब एक महिला (मां) हत्यारों पर कार्रवाई की मांग कर रही थी, तभी पुलिस उन पर टूटी पड़ी। पहले डंडे बरसाए फिर घसीटने के बाद दूर धकेल दिया।


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