Skip to main content

अक्षम सरकार और आलसी विपक्ष के बीच हमारी अर्थव्यस्था बर्बाद हो रही है, स्थिति नहीं सुधरी तो हम नए ‘अछूत’ बन जाएंगे

सदियों से अस्पृश्यता हमारे देश के लिए कलंक रही है। इससे जीवनभर लड़ने वाले अम्बेडकर ने दावा किया था कि इस बात के पर्याप्त सबूत है जो बताते हैं कि यह 400 ईसा पूर्व से चली आ रही है और यह हमेशा से ही भारतीयों के जीने का तरीका रही है।

यही वजह है कि एक तरफ धर्मनिष्ठ हिन्दू और दूसरी तरफ प्रतिबद्ध समावेशनवादी गांधी मानते थे कि इस घातक प्रथा को खत्म करना हमारे लिए ही अच्छा है। और सामाजिक न्याय पर भरोसा रखने वाले नेहरू ने कहा था कि जब तक हम जाति व्यवस्था खत्म नहीं करते और सभी भारतीयों के लिए समानता सुनिश्चित नहीं करते, भारत कभी अपनी सच्ची ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाएगा।

यह वजह है कि हमारे संविधान ने अस्पृश्यता को गैर-कानूनी बनाया। काननू बनाने इस दंडनीय अपराध बनाया गया। लेकिन क्या यह खत्म हुई? नहीं। अस्पृश्यता हमारी सोच में बहुत गहराई तक समाई है और खुलेआम नजर आ जाती है। इसकी बदसूरती हाल ही में बढ़ी ही है, जिसे कुछ राजनैतिक पार्टियों ने बढ़ावा दिया है, जो निर्दयी बहुसंख्यवाद को पाने के लिए इसे जिंदा रखना चाहते हैं।

अब सिर्फ निचली जातियां, दलित ही इससे पीड़ित नहीं हैं। भारत के कुछ हिस्सों में किसी समुदाय विशेष के गरीब लोग नए अछूत बन गए हैं। तो कुछ हिस्सों में कुछ जनजातियां नई अछूत हैं, जिन्हें उनसे जमीन, जंगल और खनिज संपदा हथियाने के लिए सरकारों ने हाशिये पर छोड़ दिया है।

और अब, देश में इस महामारी के बाद हम अछूतों का एक नया वर्ग उभरते हुए देख रहे हैं। ये हैं बीमार और मरीज, प्रवासी मजदूर, बेरोजगार, बेहद गरीब लोग। शहरों से उनका नाता टूट गया है और उनके गांव उन्हें वापस लेना नहीं चाहते क्योंकि वे बेरोजगार और कंगाल है। साथ ही सेहत का भी जोखिम है।

बीमारों का आज खुलेआम बहिष्कार हो रहा है। उनकी पत्नियों और बच्चों को कानून के मुताबिक घर में क्वारैंटाइन नहीं होने दे रहे हैं। उन्हें गांव से बाहर निकाल रहे हैं, ट्रेनों से परिजनों समेत फेंक दे रहे हैं। उनके मरने पर शमशान में उन्हें जलाने से इनकार कर रहे हैं। अस्पताल के गलियारों में मृत शरीर इकट्‌ठे हो रहे हैं। कोई उन्हें ले जाना नहीं चाहता। यहां तक कि उनके परिवार भी। इलाज करा रहे मरीजों के बगल में लाशें रखी हैं। यह भयंकर प्लेग की वापसी की तरह है।

लेकिन, आज निराश-हताश गरीब कौन हैं? नहीं, किसान नहीं जो हर साल गरीबी की वजह से आत्महत्या करते रहे हैं। अब ये हताश गरीब वे हैं जो कुछ समय पहले तक हमारी फैक्टरियों, ऑफिसों और हमारे घरों में काम कर रहे थे। इसमें छोटे व्यापारी, खाने के ठेले लगाने वाले, ऑटोरिक्शा ट्राइवर, छोटे रेस्तरां में काम करने वाले, मल्टीप्लेक्सों और मॉल के बाहर खड़े सिक्योरिटी गार्ड भी शामिल हैं।

वायरस और लॉकडाउन ने उन्हें बेरोजगार, बेघर और लगभग फटेहाल कर दिया। और अब उनके साथ करीब 14 करोड़ मध्यवर्गीय भी जुड़ गए हैं। एक रिसर्च के मुताबिक जून अंत तक इनकी बचत खत्म हो जाएगी। यानी अगल महीने के लिए इनके पासे पैसे नहीं होंगे।

हाल ही में हुआ एक सर्वे बताता है कि 84 फीसदी घरों में लॉकडाउन के बाद आय का गंभीर नुकसान हुआ है। वे अभी अपनी बचत पर जी रहे हैं। इस महीने के अंत तक बारिश के बढ़ने के साथ कई मध्यवर्गीय गरीबों की श्रेणी में फिसल जाएंगे।

वे इलाज पर खर्च करने, परिवार की आधारभूत जरूरतें पूरी करने में भी अक्षम हो जाएंगे। उन्हें किराए का घर छोड़ना पड़ेगा, अपना सामान बेचना पड़ेगा और ऐसी दर पर पैसा उधार लेना पड़ेगा, जिसे बाद में चुकाना उनके लिए असंभव हो जाएगा। वे पेंशनर भी परेशान हैं जो बैंक से मिलने वाले ब्याज पर निर्भर थे, क्योंकि बैंकों ने ब्याज दरें घटा दी हैं।

जो विदेश में नौकरी कर रहे बच्चों पर निर्भर थे, वे भी फंस गए हैं क्योंकि उनके बच्चों की नौकरी चली गई है या तन्ख्वाह कम हो गई है। इस बीच पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, जबकि ग्लोबल ट्रेंड के आधार पर कीमतें घटनी चाहिए थीं। इससे हर चीज महंगी हो जाएगी।

कुल मिलाकर, महामारी की रफ्तार थमती नहीं दिख रही है और ज्यादा से ज्यादा लोग डूबते रहेंगे। सरकार इनके हाथों में नकद रखने से इनकार कर रही है, जैसा कुछ देश कर रहे हैं। ये नए अछूत हैं। इनके लिए किसी के पास समय नहीं है। और सरकार की इनके भविष्य में सबसे कम रुचि है। इसकी बजाय वह लाखों-करोड़ों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बना रही है, जो इन लोगों तक कभी पहुंचेगी ही नहीं।

नतीजा? एक अक्षम सरकार और आलसी विपक्ष के बीच एक ऐसी अर्थव्यस्था बर्बाद हो रही है, जो भविष्य के लिए तैयार थी। अगर महामारी बनी रही और शासन की गुणवत्ता नहीं सुधरी, हम सभी अछूत बन जाएंगे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
प्रीतीश नंदी, वरिष्ठ पत्रकार व फिल्म निर्माता


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3dfcc9M

Popular posts from this blog

फेसबुक पर दोस्ती कर विधवा से किया गैंगरेप, जन्मदिन की पार्टी देने के लिए घर से बाहर ‌बुलाया

किला थाना क्षेत्र में शुक्रवार को फेसबुक पर दोस्ती कर गैंगरेप का मामला सामने आया। पीड़िता के साथ 6 महीने पहले दोस्ती कर आरोपी ने जाल में फंसा लिया। फिर दोस्त कि डेयरी में ले जाकर दोस्त के साथ दुष्कर्म किया। पुलिस मामले की जांच में जुट गई है। 26 वर्षीय महिला ने बताया कि उसकी 10 साल पहले शादी हुई थी। शादी के दो साल बाद ही पति की मौत हो गई। मौत के बाद वह मायके में आकर रहने लगी। 6 महीने उसकी पहलवान चौक कुटानी रोड के सोनू के साथ फेसबुक पर बातचीत शुरू हुई थी। उसने बातों में फंसा लिया। 25 अगस्त की रात 9 बजे सोनू ने उसे जन्मदिन की पार्टी देने के लिए घर से बाहर ‌बुलाया। वह घर से बाहर आई तो वह अपनी एक्टिवा पर बैठाकर पहलवान चौक के पास बनी महालक्ष्मी डेयरी में ले गया। जिसका संचालक विकास है। सोनू उसे अंदर ले गया और को‌ल्ड ड्रिंक पिला दी। इस बीच विकास भी वहां आ गया। वह बेेहोश हो गई। वहीं रात करीब साढ़े 11 बजे होश आया तो उसके शरीर पर कपड़े नहीं थे। महिला का आरोप है कि फेसबुक मित्र सोनू व सोनू ने दोस्त विकास के साथ मिलकर दुष्कर्म किया है। किला पुलिस का कहना है कि आरोपी की तलाश जारी है। Download D

कोसली विधायक ने गिनाए एक साल के काम, बोले- नपा भी जल्द बनेगी

कोसली के विधायक लक्ष्मण सिंह यादव ने प्रदेश सरकार के एक साल पूरा करने के उपलक्ष्य में कोसली विधानसभा क्षेत्र में हुए विकास कार्य गिनवाए। विधायक लक्ष्मण यादव मंगलवार को बाईपास स्थित जिला भाजपा कार्यालय पर पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उनके साथ जिलाध्यक्ष मा. हुकमचंद सहित अन्य पदाधिकारी भी थे। विधायक ने कहा कि कोसली विधानसभा क्षेत्र में एक साल के दौरान 110 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन हुए हैं तथा कुछ का कार्य गतिमान हैं। उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल के 8 माह संकट का समय रहा। उस समय परियोजनाओं से ज्यादा जीवन का सवाल था। कहा कि कोरोना संकट के समय कोसली क्षेत्र के लोगों ने 21 लाख रुपए की राशि आपदा कोष में जमा करवाकर सराहनीय कार्य किया। उन्होंने बताया कि कोसली-भाकली के बीच विवाद सुलझा रहे हैं। क्षेत्र में जल्द नगर पालिका बनने की उम्मीद है। बरोदा चुनाव में भाजपा की जीत का दाव किया। विधायक ने कहा कि कृष्णावती नदी की छंटाई लिए टैंडर हो गए हैं। खोल क्षेत्र में भूमिगत जलस्तर काफी नीचे चला गया है। जलस्तर को ऊपर उठाने के लिए कृष्णावती नदी पानी रिचार्ज करने का काम पूरा क

कोरोना काल में आयुर्वेदिक दवाओं की मांग बढ़ी, 4 माह में जिले के लोग पी गए 2 लाख काढ़ा पाउच, 80 हजार खाई गिलोय की गोली

कोरोनाकाल में कोरोना संक्रमण से बचाव व उपचार के लिए लोगों का एलोपैथी दवाओं की बजाय आयुर्वेदिक दवाओं पर ज्यादा भरोसा बढ़ा है। आयुष विभाग में आए काढ़ा पाउच की लगातार डिमांड बढ़ रही है। जून से लेकर अब तक जिले में 2 लाख काढ़ा पाउच को उबालकर लाेग पी चुके हैं। इसी तरह से गुडुची घनवटी (गिलोय की गोली) की भी खपत जो पहले नाममात्र की होती थी अब काफी बढ़ चुकी है। 80 हजार गिलोय गोली को लोग अब तक आयुष विभाग से ले जा चुके हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए आयुष विभाग ने इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर विभिन्न जड़ी बूटियों से तैयार काढ़ा पाउच तैयार कर जून माह में प्रदेश भर के जिलों में भेजा था। जिस समय काढ़ा पाउच की सप्लाई भेजी गई थी। उस दौरान भीषण गर्मी थी। लेकिन लोगों ने इसकी परवाह न करते हुए कोरोना संक्रमण से बचने के लिए आयुष विभाग से खूब काढ़ा पाउच लेकर गए। इसी तरह से गिलोय गोली भी लोगों द्वारा खूब ली गई। शुरुआत में घर-घर जाकर बांटे गए थे काढ़ा पाउच : जून में जब पहली बार आयुष विभाग का काढ़ा आया तो अधिकारियों व कर्मचारियों ने घर-घर जाकर, दफ्तरों में काढ़ा पाउच लोगों को बांटे। अब बदले मौसम में और बढ़