जिले की बहुप्रतिक्षित सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की योजना पर अमल तेज हो गया है। अब इसका ट्रायल दो महीने पहले ही होगा। इसके लिए निर्माण प्रक्रिया को कोरोना काल में अटक गई थी उसे अब फिर से गति मिल गई है। प्लांट में जारी निर्माण कार्य में अहम कड़ी रही चिमनी का लगभग काम पूरा हो गया है।
कोरोना काल में विभिन्न स्थानों पर अटकी सभी मशीनें अब प्लांट में पहुंच गई है। ग्रीन सोल एजेंसी की देखरेख में अब मशीनरी को सेट करने की प्रक्रिया भी अब शुरू हो गई है। एक अन्य एजेंसी प्लांट के अन्य निर्माण कार्यों का जायजा लेने के लिए अगले सप्ताह पहुंचेगी, जो कचरा प्रबंधन को लेकर बन रही व्यवस्था की समीक्षा करेगी। वे विशेष रूप से बॉयलर व टर्बाइन का सितंबर में ट्रायल होगा। बता दें कि इस तरह के देश में 5 प्लांट बनने है जबकि यह प्लांट प्रदेश का पहला प्लांट हैं।
650 टन कचरे के निपटान के साथ ही बनेगी बिजली
इस प्लांट के जरिए सोनीपत, गन्नौर, गोहाना, समालखा, राई एवं मुरथल के साथ पानीपत से करीब 650 टन कचरे से मुरथल के साढ़े 18 एकड़ जमीन में करीब नौ मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जाएगा। इस नौ मेगावाट बिजली से मुरथल सहित क्षेत्र के 20 गांवों को 24 घंटे रोशन किया जा सकता है।
पौने दो साल में पूरा होना था प्रोजेक्ट, डेढ़ साल तो शुरू ही नहीं हुआ, अब 26 अप्रैल तक का मिला समय
176 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट को लेकर हरियाणा सरकार एवं जेबीएम समूह के मध्य सीएम मनोहर लाल की मौजूदगी में सितंबर 2017 में समझौता हुआ था। इसके लिए 21 महीनों का समय दिया गया था, यह कार्य पिछले साल में ही पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन अब यह इस साल भी पूरी नहीं हो पाएगा। क्योंकि शुरुआती डेढ़ साल में तो एजेंसी सामान की खरीद तक नहीं कर सकी थी। सरकार के साथ पावर जरनेट को लेकर समझौता डेढ़ साल बाद जाकर हुआ। अब हरियाणा सरकार ने इस प्रोजेक्ट को 26 अप्रैल 2021 तक पूरा करने का समय बढ़ा दिया है।
सिविल वर्क 90 प्रतिशत पूरा
प्लांट में सिविल वर्क 90 प्रतिशत पूरा हो चुका है, जिसे शत प्रतिशत पूरा करने के साथ अब ट्रायल का दौर शुरू होगा। जिसमें सबसे पहले मशीनरी के ट्रायल होंगे तथा कचरा निपटान एवं बिजली निर्माण को लेकर सबसे बड़ा ट्रायल फरवरी में किया जाएगा।
अभी भी वर्करों की कमी
एजेंसी के लिए वर्करों को फिर से जुटाना एक बड़ा झमेला बन गया है। फरवरी में जहां यहां करीब एक हजार कर्मी कार्यरत थे अब आधे भी नहीं हैं। पहले लेबर कोस्ट पांच सौ थी, अब 650 हो गई है। पहले उनके आने-जाने की दिक्कत नहीं थी अब अक्सर कंपनी के वाहनों से वर्करों को लाया जाता है।
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