चार संस्थानों के पास ही सबमर्सिबल चलाने की मंजूरी, अवैध रूप से चल रहे इससे ज्यादा संख्या में सबमर्सिबल
जिले में जल बचाओ अभियान कागजों तक ही सीमित है। साल दर साल भू-जलस्तर तेजी से गिर रहा है। गति यही रही तो पानी की गुणवत्ता पर तो असर पड़ेगा ही, लंबे टाइम के बाद पानी भी नहीं बचेगा। करनाल ब्लॉक में वर्ष 1974 में 5.83 मीटर और वर्ष 2020 में 17.36 मीटर भू-जलस्तर गिर गया है। असंध ब्लॉक में 4.6 मीटर से बढ़कर 26.95 मीटर जलस्तर डाउन आ गया है। निसिंग में 5.15 मीटर से बढ़कर 27.62 मीटर और नीलोखेड़ी में 6.71 मीटर से बढ़कर 25.75 मीटर पानी ज्यादा निकलने पर नीचे चला गया है। यह चौकाने वाले आंकड़े आरटीआई एक्ट के तहत एडवोकेट राजेश शर्मा को हाइड्रोलोजिस्ट ग्राउंड वाटर सेल कृषि विभाग की तरफ से जारी किए गए हैं। जानकारी के अनुसार
चार संस्थानों के पास ही सबमर्सिबल चलाने की मंजूरी है। हाइड्रोलोजिस्ट ग्राउंड वाटर सेल के अधिकारियों का मानना है कि भू जलस्तर का डाउन आने का मुख्य कारण है कि जल ज्यादा निकल रहा है और वहां तक बरसात या अन्य पानी नहीं पहुंच पा रहा है। इसको सुधारने के लिए जल का दोहन कम हो और रेन हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जाए। 8 मरले या इससे अधिक जगह पर कोठी बनाने वालों को भी यह लगाना अनिवार्य है, लेकिन नियमों का पालन नहीं होता। सरकारी स्तर पर केंद्र और राज्य सरकारें कई सालों से पानी बचाओ अभियान में जुटी हुई है। सरकार के सभी दावे कागजी प्रतीत हो रहे हैं।
आईसीएआर के शुगर कैन ब्रिडिंग इंस्टीट्यूट करनाल, पुलिस हाउसिंग बोर्ड कारपोरेशन मधुबन, कल्पना चावला राजकीय मेडिकल काॅलेज व कुंजपुरा रोड चंद्रावती मेडिकल सेंटर ने ही सबमर्सिबल चलाने की मंजूरी ली हुई है। ऐसे में यह जल दोहन कर सकते हैं। इसके अलावा सर्विस स्टेशन, कारखाने, होटल, रेस्टोरेंट, बैंक्वेट हाल, अस्पताल, राइस मिल, बड़े-बड़े बिल्डर, वाटर कैंपर समेत अवैध काॅलोनियों में अवैध रूप से सबमर्सिबल लगाए हुए हैं। जिनसे पानी का दोहन करते हैं। पानी बचाओ की तरफ कोई ध्यान नहीं है।
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