
प्रवासी मजदूर इस कदर परेशान हैं कि उसे घर का जाे भी रास्ता मिल रहा है, उसी पर चला जा रहा है। फिर वह चाहे पैदल हाे, बस हाे और ट्रेन कुछ भी मिले। लेकिन कुछ प्रवासी मजदूर ऐसे भी हैं जिनके पास घर जाने के लिए पैसे भी नहीं हैं। मेहनत मजदूरी कर जो कुछ कमाया था वो सब लाॅकडाउन की वजह से दाे महीनाें में खर्च हो गया।
अब घर जाने के लिए उनके पास रूपए नहीं बचे। अपने बेटाें काे घर बुलाने के लिए काेई मां गहने गिरवी रख कर पैसे भेज रही हैं ताे कहीं किसी पिता ने अपने कलेजे के टुकड़े लिए भैंस बेच दी है। मंगलवार को हिसार बस स्टैंड पर बस का पता करने आए प्रवासी मजदूरों ने यूं बयां किया दर्द।
मजदूराें की कहानी उनकी जुबानी
बिहार के रामू ने बताया कि वह 5 महीने पहले काम की तलाश में हिसार आया था। काम तो मिल गया लेकिन लॉकडाउन के कारण दोबारा घर नहीं लौट सका। एक दो महीने में जो पैसे कमाए थे वह लॉकडाउन में खर्च हो गए। घर जाने के लिए पैसे भी नहीं बचे हैं। अब मां ने अपने गहने गिरवी रख कर मेरे लिए पांच हजार रुपए भेजे हैं।
बिहार के नौशाद ने बताया कि वह काम करने के लिए यहां आया था, अब बस जैसे तैसे घर चला जाऊं। घरवाले उसके लौटने का इंतजार कर रहे हैं। उसकी चिंता भी करते रहते हैं।
बिहार के मधुबनी के लाल सिंह ने बताया कि वह पिछले 3 महीनों से घर नहीं जा पाया है। जब घर जाने की हर कोशिश नाकाम हो गई तो अब्बा को फोन किया और बताया कि उनके पास घर आने के लिए पैसे नहीं है। अब्बा ने भैंस बेचकर किराए के लिए रुपए भेजे हैं।
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